मेरी आशाएँ
मेरे अकेले से क्या ही होना है- किसी को Pen देने से वह कोई - विद्वान या अफ्सर तो नहीं बनेगा। मुझ अकेले का मांस को त्यागने से, जानवरों का कटना तो नहीं रुकेगा। जब हम कुछ करने में असमर्थ हों, तो जीना व्यर्थ हो जाता है। जीवन बेकार-सा लगने लगता है। जब कुछ आता ही नहीं, तो भला क्या करना है? जब कुछ करना ही नहीं, तो क्यों जीना है? अब जिंदगी मिली ही है, तो थोड़ा जी लेते हैं। थोड़ी आज़ादी, थोड़ी लापरवाही कर ही लेते हैं। तो क्या हुआ जो हम Perfect नहीं ? कुछ चीजें अधुरी ही अच्छी लगती हैं। और कुछ पूरी होकर भी कमी महसूस कराती हैं। कोई अफसर चाहे ना बने, किसी का मरना भले ना टले, पर चैन की नींद, और को अपनी मुस्कान, तो हरदम साथ रहेगी। समंदर में भले मेरा एक कतरा ही सही, पर मेरे उतने योगदान का, मुझे संतोष होगा। एक क्षण के लिए ही सही, पर उससे समाज सुंदर बनेगा। अकेले ही सही, इतना तो मुझे करना है, कोशिश अधुरी ही सही, पर डंके की चोट पर, उसे सबको बताना है।